वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

हज़रत जुनैद बग़्दादी

रहमतुह अल्लाह अलैहि

 

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की विलादत बासआदत २१६हिज्री ओगदाद में हुई। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का इस्म गिरामी जुनैद बिन मुहम्मद है और कुनिय्यत अबु-अल-क़ासिम है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के वालिद गिरामी का नाम मुहम्मद बिन जुनैद था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 आप रहमतुह अल्लाह अलैहि शीशे की तिजारत किया करते थे। हज़रत जुनैद बग़्दादी रहमतुह अल्लाह अलैहि का आबाई वतन नहाविंद है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि हज़रत सिरी सकती रहमतुह अल्लाह अलैहि के भानझे मुरीद और ख़लीफ़ा हैं।

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि समाव और वज्द को पसंद नहीं फ़रमाते थे और ज़ाहिरौ बातिन में कभी ख़िलाफ़ शरीयत फे़अल आप रहमतुह अल्लाह अलैहि से ज़हूर नहीं हुआ। एक दिन आप रहमतुह अल्लाह अलैहि वाज़ फ़र्मा रहे थे कि एक मुरीद ने जोश में आकर नारा बुलंद किया। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने उस को रोका और फ़रमाया कि अगर आइन्दा तूने फिर नारा बुलंद किया तो हम से तुम्हारा कोई ताल्लुक़ नहीं होगा। इस पर इस मुरीद ने तौबा की और फिर अपने जज़बात पर क़ाबू पाने में बड़ी हद तक ज़बत-ओ-तहम्मुल से काम लिया। एक दिन वो दुबारा फिर वज्द में आगया तो उस की मौत वाक़्य होगई।

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के मुजाहिदात की ये कैफ़ीयत थी कि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि रोज़ाना अपने हुजरे में जाकर पर्दा डाल लेते और जब तक ४०० रकात नफ़ल ना पढ़ लेते बाहर तशरीफ़ ना लाते। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि मुजाहिदात में ऐसे गम होगए कि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की जो दूकान थी आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने वो भी छोड़ दी और अपने मामूं हज़रत सिरी सकती रहमतुह अल्लाह अलैहि के डेयुढ़ी में एक हुजरा के अंदर चालीस साल तक मसरूफ़ इबादत रहे।

एक दिन एक माजोसी गले में ज़ुन्नार और मुस्लमानों का लिबास पहन कर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत आया और इस हदीस शरीफ़ का मतलब दरयाफ़त करने लगा "मोमिन की फ़िरासत से डरो कि वो अल्लाह के नूर को देखता है"। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने इस सवाल को सन कर तबस्सुम फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया कि इस हदीस शरीफ़ का मतलब ये है कि अपना ज़ुन्नार तोड़ कर कुफ्र को छोड़ दो और कलिमा पढ़ कर मुस्लमान होजाओ। माजोसी ने ये जवाब सुना तो फ़ौरन कलिमा पढ़ कर मुस्लमान होगया। इमाम याफ़ई रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि इस से हज़रत जुनैद बग़्दादी रहमतुह अल्लाह अलैहि की दो करामतें ज़ाहिर होती हैं एक तो उस नौजवान के कुफ्र पर इत्तिला पाना दोयम इस बात पर आगाह होना कि वो उस वक़्त इस्लाम क़बूल करलेगा।

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का एक मुरीद बस्रा में रहता था इस के दिल में एक रोज़ गुनाह का ख़्याल पैदा हुआ। बस इस ख़्याल का आना ही था कि इस का चेहरा स्याह होगया। इस सूरत-ए-हाल से बहुत घबराया और श्रम विंदा मत से घर से बाहर निकलना तर्क कर दिया। तीन रोज़ में मुँह की स्याही कम होते होते बिलकुल ठीक होगई और इस का चेहरा रोशन होगया। एक रोज़ एक शख़्स आया और उसे हज़रत जुनैद बग़्दादी रहमतुह अल्लाह अलैहि का ख़त दिया। जब इस ने ख़त पढ़ा तो इस में तहरीर था कि अपने दिल को क़ाबू में रखू और बंदगी के दरवाज़े पर अदब से रहो इस लिए कि आज मुझे तीन दिन और रात से धोबी का काम करना पड़ रहा है ताकि तुम्हारे चेहरे की स्याही धो सकूं।

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के एक मुरीद थे जिन पर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ख़ुसूसी शफ़क़त-ओ-मुहब्बत फ़रमाते थे। कुछ लोगों को ये बात नागवार गुज़री। जब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि इस बात से आगाह हुए तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया मेरा ये मुरीद अदब वाक्कल में तुम सब से ज़्यादा बुलंद है। फिर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अपने हर मुरीद को जो उस वक़्त वहां मौजूद थे एक एक छुरी दे कर इरशाद फ़रमाया कि इन मुर्ग़ीयों को ऐसी जगह ज़बह करके लाओ जहां कोई देखने वाला ना हो। सभी मर यदैन मुर्ग़ीयों को लेकर चले गए और पोशीदा जगहों से उन मुर्ग़ीयों को ज़बह करके ले आए। लेकिन वो मुरीद ख़ास अपनी मुर्ग़ी को ज़िंदा वापिस ले आया। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने इस से दरयाफ़त किया कि तुम ने उसे ज़बह क्यों नहीं किया। इस ने जवाब दिया हुज़ूर में जिस जगह भी पहुंचा वहां क़ुदरत इलाही को मौजूद पाया और उस को देखने वाला पाया।मुझे क्योंकि कोई पोशीदा जगह नहीं मिली इस लिए मजबूरन वापिस ले आया हूँ। ये जवाब सन कर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने इरशाद फ़रमाया तुम सब लोगों ने इस का जवाब सन लिया। यही इस का ख़ास वस्फ़ है जिस की वजह से में उस को बहुत चाहता हूँ।

जब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की दुनिया से रुख़्सती का वक़्त क़रीब आया तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ज़बान मुबारक पर तस्बीह जारी थी चार उंगलीयों को बांधे हुए थे। बिसमिल्लाह पढ़ी और वासल्य बहक होगए। ग़स्साल ने ग़ुसल देते वक़्त चाहा कि आँखों के अन्दर पानी डाले, आवाज़ आई हमारे दोस्त की आँखों से अपने हाथ को अलग रखू जो आँख हमारा नाम लेकर बंद हो वो हमारे लिए ही खोली जा सकती है। इसी तरह आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की उंगलीयों को खोलना चाहा तो वो भी ना खुल सकीं।

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि २७रजब एल्मर जब २९७हिज्री को इस दार फ़ानी से रुख़स्त हुए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का मज़ार शरीफ़ बग़दाद में वाक़्य है।